रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने || Racha hai srishti ko jis prabhu ne lyrics

 रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने || Racha hai srishti ko jis prabhu ne lyrics

सृष्टि की रचना एक अद्भुत चमत्कार है, जिसे समझने और अनुभव करने के लिए हमें अपनी आत्मा से जुड़ना पड़ता है। यह कविता, "रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने," प्रभु की शक्ति, सृष्टि की सुंदरता, और जीवन के चक्र का भावपूर्ण चित्रण करती है। इसे पढ़ें और आध्यात्मिकता की गहराई में डूब जाएं।
 

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

इसी धरा से शरीर पाए,
इसी धरा में फिर सब समाए,
है सत्य नियम यही धरा का,
है सत्य नियम यही धरा का,
एक आ रहे है एक जा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

जिन्होने भेजा जगत में जाना,
तय कर दिया लौट के फिर से आना,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
जो भेजने वाले है यहाँ पे,
वही तो वापस बुला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

बैठे है जो धान की बालियो में,
समाए मेहंदी की लालियो में,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
हर डाल हर पत्ते में समाकर,
गुल रंग बिरंगे खिला रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥

रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है,
जो पेड़ हमने लगाया पहले,
उसी का फल हम अब पा रहे है,
रचा है सृष्टि को जिस प्रभु ने,
वही ये सृष्टि चला रहे है ॥


भजन का अर्थ और संदेश:

इस कविता में बताया गया है कि जिस प्रभु ने सृष्टि रची, वही उसे चला रहे हैं। सृष्टि का हर नियम, जैसे कि जीवन और मृत्यु का चक्र, इसी सत्य को दर्शाता है। यह कविता हमें यह सिखाती है कि हमें प्रकृति और प्रभु की रचनाओं का सम्मान करना चाहिए।

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